Saturday, January 2, 2010

मन की पहेली

कभी बारिश की बूँद है मन
कभी प्रतिबिंब दिखाता सागर भी,
मंदिर की ज्योति है मन
या आसमान में कड़कती बिजली,
कभी है सागर की लहर
कभी मन है पर्वत शिखर,
वीणा की मधुर तान है मन
तो कभी है रात निशब्द सी,
कभी चिलचिलाती धूप रे मन
कभी छाया शीतल सी,
ओस की कोमल बूँद कभी तू
कभी कठोर तू शब्दों से भी
कभी नक्षत्रों का सुंदर नक्शा
तो कभी शांति शून्य अवकाश की,
मन तू तो है एक पहेली
प्रातः समय की भूपाली
या संध्या की मोहन-मुरली

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