Monday, January 25, 2010

A blind girl


सृजन समय में भटकी एक किरण
करती विजन ब्रह्मांड में मार्गक्रमण
एक स्फटिक के पार हो गयी...
कोई जादू था वह अद्भुत
या रचनाकार की करामात
किरण सात हिस्सों में विभाजित हो गयी...
उन सात हिस्सों को हमने रंग कह दिया
रंगों ने विश्व को व्याप लिया...
और दुनिया रंगीली हो गयी !
इस रंग-रंगीली दुनिया को हम देख सकते हैं
बंद आँखों से भी रंगीले सपने सजा सकते हैं
लेकिन उनका क्या जिनकी आँखों में रोशनी ना हो!

Sunday, January 24, 2010

कल


नीर भरी बदली से व्याप्त है गगन
फिर भी क्यों भड़क उठा यह कानन?
उपर उठती लौ कौनसी
और कौनसे हैं श्यामल बदल
आपस में मिलकर दोनों एक से मलीन लग रहे हैं !


दावानल की उदास रोशनी में
मैं खोज रहा हूँ जीवन
खोज रहा हूँ पल्लवित अंकुर
आशा की एक किरण
लेकिन सिर्फ़ मृत जीवों के कंकाल मिल रहे हैं !


प्रकाश ढूँढ रहा था
वन के घोर तिमिर में
थक कर निष्क्रिय हो बैठा हूँ
निशांत के इंतजार में...
लेकिन अब लगता है कि सूरज ही काला है !


लौ से उठते धुँए के बीच खड़ा हो
मैं याद करता हूँ वह सारे पल
धुँधली हैं बीते कल की यादें
और अस्पष्ट है आने वाला कल
इसलिए आज बढ़ते कदम थाम रहा हूँ

मेरे अलिखित कल से मिलने के लिए!

Saturday, January 2, 2010

मन की पहेली

कभी बारिश की बूँद है मन
कभी प्रतिबिंब दिखाता सागर भी,
मंदिर की ज्योति है मन
या आसमान में कड़कती बिजली,
कभी है सागर की लहर
कभी मन है पर्वत शिखर,
वीणा की मधुर तान है मन
तो कभी है रात निशब्द सी,
कभी चिलचिलाती धूप रे मन
कभी छाया शीतल सी,
ओस की कोमल बूँद कभी तू
कभी कठोर तू शब्दों से भी
कभी नक्षत्रों का सुंदर नक्शा
तो कभी शांति शून्य अवकाश की,
मन तू तो है एक पहेली
प्रातः समय की भूपाली
या संध्या की मोहन-मुरली